वाल्मीकि रामायण और महाभारत, साथ ही पुराणों में कहा गया है कि हनुमान जी को भगवान राम से यह वरदान मिला था कि वे जब तक पृथ्वी पर रामकथा, रामनाम और धर्म की ध्वनि रहेगी, तब तक वे इस पृथ्वी पर रहेंगे। सनातन धर्म के अनुसार, हनुमान जी को चिरंजीवी (अमर) माना गया है। चिरंजीवियों की सूची में कुल सात महापुरुषों को गिना जाता है, जिनमें से एक हैं – हनुमान जी। इसका अर्थ है कि वे अभी भी इस पृथ्वी पर जीवित हैं। हनुमान जी आज भी अपने भक्तों की सहायता करने इस धरती पर विचरण कर रहे हैं।
चिरंजीवी है हनुमान जी: शास्त्रीय प्रमाण
हनुमान जी को चिरंजीवी (अमर) कहा गया है, और इसके पीछे कई शास्त्रों, पुराणों और रामायण से प्रमाण मिलते हैं। उनके चिरंजीवी होने का तात्पर्य यह है कि वे इस सृष्टि में कलयुग के अंत तक जीवित रहेंगे और भक्तों की रक्षा करते रहेंगे। शास्त्रीय प्रमाणों के साथ विस्तार से –
1. रामायण का प्रमाण (उत्तर कांड)
श्रीराम द्वारा दिया गया वरदान: उत्तर कांड में आता है कि जब श्रीराम अयोध्या में राज्याभिषेक के बाद सभी सेवकों को आशीर्वाद दे रहे थे, तब उन्होंने हनुमान जी को यह वरदान दिया:
“यावत् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले। तावत् त्वं स्थास्यसि पृथिव्यां शरिरस्थोऽपि निर्मलः॥”
भावार्थ: “हे वीर हनुमान! जब तक इस धरती पर रामकथा का प्रचार होता रहेगा, तब तक तुम पृथ्वी पर रहोगे, शरीर सहित और पवित्र रूप में।” इससे स्पष्ट है कि हनुमान जी को स्वयं भगवान श्रीराम ने चिरंजीवित्व का वरदान दिया। “हे अंजनीपुत्र! तुम्हारा प्रेम और भक्ति अनंत है। मैं तुम्हें यह वरदान देता हूँ कि जब तक इस धरती पर मेरे नाम का स्मरण होता रहेगा, जब तक रामकथा गाई जाती रहेगी, तब तक तुम इस पृथ्वी पर जीवित रहोगे, तुम अजर और अमर रहोगे, तुम मेरे भक्तों की रक्षा करते रहोगे, जो तुम्हारा नाम लेकर मेरी आराधना करेगा, उस पर मेरी कृपा हमेशा रहेगी। ”
2. महाभारत का प्रमाण
भीम और हनुमान संवाद (वन पर्व): महाभारत के वन पर्व में जब भीम गंधमादन पर्वत की ओर जा रहे थे, तो उनका सामना एक वृद्ध वानर से हुआ, जो वास्तव में हनुमान जी थे। वहाँ हनुमान जी ने कहा:
“रामकार्य समारम्भे त्वया युध्दं कृतं मया।
तत्र प्राप्तं चिरंजीव्यमहं तेन तदा प्रभो॥”
भावार्थ: “मैंने भगवान राम का कार्य पूर्ण किया और उसी के कारण मुझे चिरंजीव होने का वर प्राप्त हुआ।”
3. पुराणों में उल्लेख – विशेषकर “स्कंद पुराण” और “पद्म पुराण”
स्कंद पुराण में वर्णन आता है कि हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार माना गया है और उन्हें सात चिरंजीवियों में से एक कहा गया है:
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविन:॥
इसमें कुछ पाठों में आठवां चिरंजीवी मार्कण्डेय ऋषि को भी माना गया है।
4. स्वयं हनुमान जी का संकल्प
हनुमान जी ने स्वयं यह संकल्प किया कि वे तभी तक पृथ्वी पर रहेंगे जब तक रामकथा जीवित है और जब तक लोग उन्हें याद करेंगे।
क्यों दिए गए हनुमान जी को चिरंजीव का वर?
- 1. भक्ति की पराकाष्ठा: हनुमान जी की श्रीराम के प्रति भक्ति अनुपम है, अतुलनीय है। उनकी सेवा, त्याग और निःस्वार्थ प्रेम के कारण उन्हें यह वरदान मिला।
- 2. सतयुग से कलियुग तक की रक्षा: कलियुग में जब धर्म की हानि होती है, तब चिरंजीवी देवता धर्म की रक्षा करते हैं। हनुमान जी भक्तों के दुःख हरने के लिए सदा सजीव हैं।
- 3. रामकथा के प्रचारक: वे रामकथा को जीवित रखते हैं, और जहां भी रामनाम का कीर्तन होता है, वहाँ उनकी उपस्थिति मानी जाती है।
इनको दिए साक्षात दर्शन
गोसाईं तुलसीदास जी: तुलसीदास जी को हनुमान जी ने कई बार दर्शन दिए थे। एक बार उन्होंने बनारस में रामनाम जपते हुए तुलसीदास से बात की।
स्वामी रामदास (छत्रपति शिवाजी के गुरु): उन्हें भी हनुमान जी ने दर्शन दिए और शिवाजी के राष्ट्रनिर्माण में मार्गदर्शन किया।
रहस्यमयी स्थान: जहां मिलते हैं हनुमान जी के ज़िंदा होने के प्रमाण ?
1. गंधमादन पर्वत (हिमालय क्षेत्र): इस जगह का उल्लेख रामायण, महाभारत और कई पुराणों में आता है. इसे हनुमान जी की उपस्थिति और तपस्या से जोड़ा जाता है। कुछ विद्वान और संत मानते हैं कि गंधमादन पर्वत हिमालय में बद्रीनाथ और मानसरोवर के बीच है। यह स्थान बहुत ही रहस्यमय और कठिनाई से पहुंचा जा सकता है। यह क्षेत्र तिब्बत सीमा के पास पड़ता है. काफी दुर्गम है। बद्रीनाथ से आगे जो माणा गांव है (भारत का अंतिम गांव), वहां से आगे का क्षेत्र ही गंधमादन क्षेत्र माना जाता है।
आज भी माणा गांव के लोग मानते हैं कि वहां हनुमान जी अदृश्य रूप में रहते हैं। वहां एक जगह है भीम पुल, जो कहा जाता है कि पांडवों के स्वर्गारोहण के समय बनाया गया था, यह गंधमादन की ओर जाता है। कहा जाता है कि कहा जाता है कि हनुमान जी यहीं सशरीर भक्ति में लीन रहते हैं। हनुमान जी आज भी गंधमादन पर्वत पर तपस्या में लीन हैं।

2. चित्रकूट : जब गोस्वामी तुलसीदास जी तीर्थ यात्रा के दौरान चित्रकूट पहुँचे, तब वे राम दर्शन की अत्यंत लालसा में तपस्या कर रहे थे। लेकिन भगवान श्रीराम के सीधे दर्शन नहीं हो रहे थे। उसी समय हनुमान जी, एक वृद्ध भिक्षु के रूप में आए। हनुमान जी ने तुलसीदास जी से कहा: “राम नाम का सच्चा जाप कर, वह स्वयं दर्शन देंगे।” तुलसीदास जी ने उनकी बात मानी और साधना तेज की। प्रसन्न होकर हनुमान जी ने अपने असली रूप में दर्शन दिए।
3. रामेश्वरम : ये जगह श्रीराम की प्रिय जगह मानी जाती थी, कहते हैं कि यहां हनुमान जी अक्सर गुप्त रूप में उपस्थित रहते हैं।
4. हिमालय: हिमालय में हनुमानजी आज भी विचरण करते है, एवं श्री राम की भक्ति में तप करते है। यह दुर्गम क्षैत्र है।
5. बद्रीनाथ और काशी जैसे तीर्थ स्थानों में: माना जाता है कि ये स्थान हनुमान जी की गुप्त यात्राओं के केंद्र हैं।
6.रामायण कथा या रामचरितमानस पाठ में यदि भावना प्रबल हो, तो हनुमान जी वहाँ अदृश्य रूप से उपस्थित होते हैं। जहां रामकथा, रामनाम या सच्ची भक्ति होती है।
7.कुंभ मेले के दौरान कई संत और साधु कहते हैं कि हनुमान जी वहाँ भिक्षु रूप में आते हैं।
8.मानकर्णिका घाट, वाराणसी: कुछ संतों का मानना है कि हनुमान जी अघोरी रूप में कभी-कभी यहां प्रकट होते हैं। कई साधु कहते हैं कि उन्हें “काले वानर” के रूप में दर्शन हुए हैं।
9. लेपाक्षी मंदिर, आंध्र प्रदेश: यहां की प्राचीन दीवारों पर अंकित चित्रों और शिलालेखों में हनुमान जी के दिव्य रूपों का उल्लेख है। कुछ विद्वान मानते हैं कि यह स्थान हनुमान जी की दिव्य गतिविधियों का गवाह है।
10. सच्ची श्रद्धा: कई स्थानों पर लोगों ने यह अनुभव किया है कि संकट के समय एक बलशाली वानर या सन्त आकर उन्हें बचाते हैं और फिर अचानक लुप्त हो जाते हैं। रामानुजाचार्य, श्रीराघवेंद्रस्वामी और कई अन्य संतों को अपने जीवन में हनुमान जी के मिलने की बात कही जाती है। कुछ साधु-संतों और योगियों ने दावा किया है कि उन्हें किसी गुफा, जंगल या तीर्थ पर एक तेजस्वी, बलवान, साधु रूपी व्यक्ति मिले, जो बाद में गायब हो गए, इन घटनाओं को हनुमान जी का गुप्त दर्शन माना गया।
निष्कर्ष:
हनुमान जी सिर्फ एक पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि जीवित आस्था का प्रतीक हैं। उनका नाम लेने मात्र से ही भय मिटता है और मन में शक्ति का संचार होता है। चाहे वह दृश्य रूप में हों या अदृश्य, उनका अस्तित्व आज भी हमारे बीच जीवित है। तपस्या की अवस्था में रहते हैं साधारण मानव की दृष्टि से अदृश्य हैं। केवल सच्चे भक्तों को दर्शन देते हैं। जब-जब संकट आता है, वे किसी रूप में आकर रक्षा करते हैं।
- भगवान श्रीराम ने उन्हें वरदान दिया। उनके अद्वितीय बल, सेवा और भक्ति के कारण यह दिव्य योग्यता मिली। वे धर्म के संरक्षक और रामकथा के जीवंत प्रचारक हैं।