नई दिल्ली, 09 अप्रैल 2025 – राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 अब कानून बन चुका है, लेकिन इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। केंद्र सरकार ने इन याचिकाओं पर एकतरफा फैसला रोकने के लिए शीर्ष अदालत में कैविएट (Caveat) दाखिल कर दी है, ताकि सरकार को भी सुनवाई का मौका मिल सके। यह मामला अब 15 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हो सकता है ।
क्या है वक्फ संशोधन कानून 2025?
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025, जिसे अब “उम्मीद अधिनियम” (UMEED – Unified Waqf Management, Empowerment, Efficiency and Development Act) के नाम से जाना जाता है, वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और सुधार लाने के उद्देश्य से लाया गया है। इस कानून के मुख्य प्रावधान हैं:
- वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों और महिलाओं की भागीदारी – अब वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्य और कम से कम दो मुस्लिम महिलाएं शामिल होंगी ।
- वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण – संपत्तियों का बेहतर रिकॉर्ड और ऑडिट सुनिश्चित किया जाएगा।
- कलेक्टर को सर्वेक्षण का अधिकार – अब जिला कलेक्टर या उनके द्वारा नामित अधिकारी वक्फ संपत्तियों का सर्वे करेंगे, न कि वक्फ बोर्ड ।
- हाई कोर्ट में अपील का प्रावधान – वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अब हाई कोर्ट में 90 दिनों के भीतर अपील की जा सकेगी ।
- “वक्फ बाई यूजर” प्रावधान हटाया गया – अब कोई भी व्यक्ति केवल घोषणा या वसीयत के जरिए ही वक्फ कर सकेगा, लंबे समय से उपयोग के आधार पर नहीं ।
इस विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा में कड़ी बहस के बाद पारित किया गया था, जहां सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहस हुई। विपक्ष का आरोप है कि यह कानून मुस्लिमों के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप करता है, जबकि सरकार का दावा है कि यह पारदर्शिता और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेगा ।
सुप्रीम कोर्ट में क्यों दाखिल हुई कैविएट ?
वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की हैं। इन याचिकाओं में कानून को संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन बताया गया है ।
केंद्र सरकार ने इन याचिकाओं पर बिना सुनवाई के कोई आदेश न हो, इसके लिए कैविएट दाखिल किया है। कैविएट एक कानूनी प्रक्रिया है, जिसमें कोर्ट किसी एक पक्ष को बिना दूसरे पक्ष को सुनें फैसला नहीं सुनाता ।
याचिकाओं में क्या आरोप लगाए गए ?
- धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला – याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना मुस्लिमों के धार्मिक प्रशासन में हस्तक्षेप है ।
- संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन – कुछ याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि यह कानून समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह केवल मुस्लिम समुदाय पर लागू होता है ।
- वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण – कलेक्टर को सर्वेक्षण का अधिकार देकर सरकार ने वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता कम कर दी है ।
सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि यह कानून मुस्लिम महिलाओं और पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया है और इसमें कोई भेदभाव नहीं है ।
क्या सुप्रीम कोर्ट इस कानून को रद्द करेगा ?
विशेषज्ञों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट किसी भी कानून को केवल तीन आधारों पर चुनौती दे सकता है:
- विधायी सक्षमता – क्या संसद को यह कानून बनाने का अधिकार था?
- संवैधानिक उल्लंघन – क्या यह संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है?
- मनमानापन – क्या यह कानून तर्कहीन या भेदभावपूर्ण है?
वक्फ संशोधन अधिनियम संसद में लंबी बहस के बाद पारित हुआ है, इसलिए विधायी सक्षमता के आधार पर इसे चुनौती देना मुश्किल होगा। हालांकि, धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के अधिकार पर सवाल उठाए जा सकते हैं ।
निष्कर्ष
वक्फ संशोधन कानून 2025 एक बड़ा सुधारात्मक कदम है, लेकिन इसके विवादों ने इसे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा दिया है। 15 अप्रैल को होने वाली सुनवाई में अदालत का फैसला इस मामले में महत्वपूर्ण होगा। अगर कानून को बरकरार रखा जाता है, तो यह वक्फ प्रबंधन में एक बड़ा बदलाव लाएगा, लेकिन अगर इसे रद्द किया जाता है, तो सरकार को नए सिरे से विचार करना होगा।
फिलहाल, यह मामला कानूनी पेचीदगियों और राजनीतिक बहसों के बीच फंसा हुआ है, जिसका अंतिम निर्णय अदालत ही करेगी।