Mahamrityunjaya Mantra : मृत्यु पर विजय पाने का महामंत्र है महामृत्युंजय मंत्र , जानें इसकी महिमा

Mahamrityunjaya Mantra

Mahamrityunjaya Mantra महामृत्युंजय मंत्र मृत्यु पर विजय पाने का महामंत्र है महामृत्युंजय मंत्र , इससे मृत्यु पर विजय पाने के साथ ही अकाल मृत्यु का भय भी दूर हो जाता है । इसे दीर्घायु का महामंत्र भी कहा जाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसके जाप से व्यक्ति को दीर्घ आयु का आशीर्वाद तो मिलता ही है। साथ ही अकाल मृत्यु का भय भी दूर हो जाता है । महामृत्युंजय का शाब्दिकअर्थ है मृत्यु को जीतने वाला या मृत्यु पर विजय पाने वाला । आइए जानते हैं इस मंत्र की रचना की कथा और इसकी महिमा –

शिव को समर्पित है महामृत्युंजय मंत्र।

Mahamrityunjaya Mantra: सनातन धर्म में भगवान शिव को देवाधिदेव महादेव की उपाधि दी जाती है। सनातन धर्म के अनुसार भगवान शिव की आराधाना करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही महादेव की आराधना के लिए समर्पित महामृत्युंजय मंत्र को भी बहुत ही प्रभावशाली चमत्कारी माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महामृत्युंजय मंत्र की रचना किसने और क्यों की?

महामृत्युंजय मंत्र –

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

अर्थ – हम त्रिनेत्र धारी भगवान शिव की पूजा करते हैं, जो इस पूरे संसार का पालन-पोषण करते हैं। जिस प्रकार फल शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है, ठीक उसी हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।

महामृत्युंजय मंत्र की रचना

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पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि मृकण्डु शिव के अनंत भक्त थे। उनके कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने संतान प्राप्ति हेतु भगवान शिव की कठोर तपस्या की, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हो गए। महादेव ने ऋषि मृकण्डु को संतान का आशीर्वाद तो दिया, लेकिन साथ ही यह भी बताया कि उनकी संतान अल्पायु तक ही जीवित रहेगी। इसके कुछ समय बाद ऋषि मृकण्डु के घर में पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम मार्कण्डेय रखा गया। अपने पिता की तरह ही मार्कण्डेय जी भी भगवान शिव के परम भक्त थे। वह भी महादेव की भक्ति में ही लीन रहते थे।

मार्कण्डेय जी के माता-पिता हमेशा इस दुख से घिरे रहते थे, कि उनका पुत्र केवल 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगा। माता-पिता के इस दुख को दूर करने के लिए ऋषि मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करते रहे। जब उनकी मृत्यु का समय निकट आया तो यमदूत उनके प्राण हरने के लिए वहां पहुंचे।

लेकिन ऋषि मार्कण्डेय को शिव भक्ति में लीन देख वह वापस लौट गए और सारी बात यमराज को बताई। इसके बाद यमराज स्वयं उनके प्राण हरने के लिए पहुंचे और उन पर अपना मृत्यु पाश चला दिया। इस दौरान मार्कण्डेय शिवलिंग से लिपट गए, जिस कारण पाश शिवलिंग पर जा गिरा। यमराज की आक्रमकता देखकर भगवान शिव जी क्रोधित होकर वहां प्रकट हो गए। तब यमराज ने शिव जी से कहा कि इस बालक की मृत्यु तय है और यही विधि के विधान है। तब भगवान शिव ने मार्कण्डेय को दीर्घायु का वरदान दिया, जिससे विधि का विधान ही बदल गया।

डिसक्लेमर: इस लेख में निहित जानकारी हमारे सनातन धर्म के पौराणिक ज्ञान के अनुसार दी गई है , यदि इसका नियमानुसार दृढ़ता एवं श्रद्धा से पालन किया जाए तो अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है ।

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