Kaal Bhairav : रोग, शोक, दुख, अकाल मृत्यु का भय दूर करने वाले भैरव बाबा की उत्पत्ति की कथा
Kaal bhairav जयन्ती : प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। रोग, दुख, अकाल मृत्यु का भय दूर करने वाले भैरव बाबा की उत्पत्ति इसी दिन भगवान शिव के रुद्रावतार से हुई थी। तो आइए जानते हैं भैरव बाबा की उत्पत्ति की कथा-
Kaal bhairav कथा : तंत्र-मंत्र के देवता काल भैरव की जयंती अकाल मृत्यु, रोगों, भय और दुख आदि से दूर करने वाले काल भैरव जयंती मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। वहीं हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भी मासिक भैरव कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है । काल भैरव की पूजा करने से मनुष्य को अकाल मृत्यु, रोग, दोष आदि का भय नहीं सताता है। शत्रु उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते हैं । आज 5 दिसंबर 2023, काल भैरव जयंती पर जानते हैं कि भगवान शिव के रुद्रावतार काल भैरव की उत्पत्ति कैसे हुई थी।
देवाधिदेव शिव के सबसे उग्र रूप हैं काल भैरव
सनातन धर्म शस्त्रों अनुसार भगवान कालभैरव भगवान शिव के सबसे उग्र रूप हैं, वे हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और बुरे कर्म करने वालों को दंड देते हैं। पौराणिक कथाओं में भगवान शिव के भैरव रूप में प्रकट होने की अद्भुत घटना का वर्णन है । इसके अनुसार एक बार सुमेरु पर्वत पर देवताओं ने ब्रह्मा जी से प्रश्न किया कि परमपिता इस चराचर जगत में अविनाशी तत्व कौन है जिनका आदि-अंत किसी को भी पता ना हो । तब ब्रह्माजी ने कहा कि इस जगत में अविनाशी तत्व तो केवल मैं ही हूँ क्योंकि यह सृष्टि मेरे द्वारा ही सृजित हुई है । मेरे बिना संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
फिर देवताओं ने यही प्रश्न विष्णुजी से किया तो उन्होंने कहा स्वयं को इस चराचर जगत का भरण-पोषण करने वाला और अविनाशी बताया । ऐसे में देवता असमंजस में पड़ गए । फिर सत्यता की कसौटी पर परखने के लिए चारों वेदों को बुलाया गया । चारों वेदों ने एक ही स्वर में कहा कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, जिनका कोई आदि-अंत नहीं है, जो अजन्मा है, जो जीवन-मरण सुख-दुःख से परे है, देवता-दानव जिनका समान रूप से पूजन करते हैं, वे अविनाशी तो भगवान रूद्र ही हैं ।
शिवजी का उग्र रूप
चारों वेदों के ये वचन सुनते ही ब्रह्मा जी के पांचवे मुख ने शिव जी के विषय में कुछ अपमानजनक शब्द कहे, जिन्हें सुनकर चारों वेद अति दुखी हुए । तभी एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए । तब ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि हे रूद्र! तुम मेरे ही शरीर से पैदा हुए हो, अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम ‘रूद्र‘ रखा है अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ. ब्रह्मा की यह बात सुनकर भगवान शिव को भयानक क्रोध आ गया और उन्होंने भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया और कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो।
उस दिव्यशक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया । इसके कारण इन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा. इससे मुक्ति पाने के लिए शिव ने भैरव बाबा को काशी जाने के लिए कहा । वहां उन्हें ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली । साथ ही भगवान शिव ने भैरव बाबा को काशी का कोतवाल नियुक्त किया । आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में भैरव बाबा पूजे जाते हैं । इनके दर्शन किए बिना बाबा विश्वनाथ के दर्शन अधूरे रहते हैं । इस प्रकार काल भैरव की उत्पत्ति हुई जो रोग, शोक, दुख, अकाल मृत्यु का भय दूर करने वाले है ।
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(Disclaimer: Jagaran Time के इस लेख में दी गई जानकारी हिन्दू धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित है । )
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